राघव ब्लॉग… बढ़ती बेरोजगारी “राजनीति की खाट पर बँधा पड़ा विकास – बेरोजगारी खेल रही स्मार्टफोन पर ताश”

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बेरोजगारी का आंकड़ा समय के साथ दुनिया मे बढ़ता ही जा रहा है। एक अभिशाप की तरह यह महामारी का रूप लेते हुए युवाओं के दिलो दिमाग़ को खोखला करती जा रही है। देश का युवा निरंतर हताश ओर बेचैन होता जा रहा है। बेरोजगारी भयावह रूप तब लेती है ज़ब देश का ऊर्जावान ओर सक्षम युवा गलत रास्तो पर अपना कदम बढ़ाने का प्रयास करने लगता है। आंकड़ों से समझना चाहे तो जनवरी 2020 मे शहरी बेरोजगारी दर 9.70% थी जो मई 2020 में बढ़कर 25.79% हो चुकी है, वही ग्रामीण क्षेत्रो मे यह दर 6.06% थी जो अब बढ़कर 16.42% तक जा पहुंची है। आंकड़ों की इस बढ़ती खाई के बीच कोरोना के प्रभाब को भी नजरअंदाज करना जायज नहीं होगा। बेरोजगारी के कारणों को जाने बगैर इसके समाधान के रास्तो को खोजना असम्भव है इसलिये कुछ बिंदु जो बढ़ती बेरोजगारी के कारण बने हुए है —

(1) औधौगिकीकरण — देश मे उधोगों को बढ़ाने का प्रयास हर सरकार करती है लेकिन मशीनीकरण के बढ़ते इस दौर मे कामगारों को सड़क पर लाकर रख दिया है। पहले जहाँ किसी काम के लिए 100 लोगो की आवश्यकता होती थी तो अब मशीनीकरण के इस दौर मे 20 लोग ही काम आ रहे है, बाकि के 80 लोग बेरोजगार हो चुके है। ये तो मात्र उदाहरण था जबकि देश मे इनकी संख्या लाखो में है।

(2) बढ़ती जनसंख्या — जनसंख्या विस्फोट एक बड़ा कारण रहा है। बढ़ती जनसंख्या के कारण प्रतिद्वंदता बढ़ रही है। जैसे आज एक वेकन्सी निकलती है तो हजारों युवा उसे पाने की जद्दोजहद मे लग जाते है। इस कारण को रोकने के लिए सरकार को जल्द एक जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाना जरुरी है।

(3) युवाओं का केवल नौकरी पर आश्रित होना — ज़ब तक देश का ऊर्जावान युवा केवल नौकरी के पीछे भागेगा, कितने भी देश मे सुधार कर लिए जाये बेरोजगारी भी उनका पीछा करेगी। हम यदि भारत को विकाशशील देश से विकसित देश बनाना चाहते है तो हमें व्यवसाय की ओर भी रुख करना पड़ेगा। नौकरी नहीं मिलने पर हताश युवा घर बैठ जाता है या फिर किसी छोटी तनख्वाह पर नौकरी करता है लेकिन एक दिन उस नौकरी से भी निकाल दिये जाने पर बेरोजगारो की श्रेणी मे चला जाता है। कोई भी धंधा छोटा नहीं होता ओर धंधे को शुरू करने के लिए आपको पैसे की कम और ,लगन व मेहनत की ज्यादा आवश्यकता होती है। जैसे एक फाइनेंस कम्पनी मे रिकवरी की नौकरी करने वाला व्यक्ति औसतन भागदौड़ करके 15-20 हजार कमाता है, खर्चो को निकालने के बाद बहुमुश्किल 8000 बचा पाता है। अब यदि उसे बोला जाये कि क्यों न ठेले से अपना खुद का धंधा शुरू किया जाये तो वह आत्मसम्मान की बात करने लग जाता है। आज भी हमारे देश मे बेरोजगारी से पीड़ित ज्यादातर व्यक्तियों को लगता है कि ऐसे धंधों को करने से अच्छा है कि मै बेरोजगार घर में बैठ जाऊ। यकीन मानिये ऐसे धंधों को आज का युवा अपने आत्मसम्मान पर चोट मानता है और इस मानसिकता को अब बदलने का समय आ चूका है।

आप कुछ उदाहरण के तौर पर बदलती युवा सोच को समझ सकते है —

(1) IIT से निकले ओर IIM topper बिहार के निवासी कौशलेन्द्र ने अपनी करोड़ो की नौकरी छोड़कर पटना आ गए। कुछ अलग करने ओर छोटे समझे जाने वाले धंधे को बड़ा रूप देने की अपनी कार्ययोजना के बारे में ज़ब परिवार वालो को बताया तो कोई न विश्वास करने वाला था न उनके इस कार्य के लिए इजाजत देने वाला था। अडिग कौशलेन्द्र ने ठेला खरीदा ओर निकल बड़े सब्जी बेचने। एक topper को इस तरह देखकर उनका मजाक बनना शुरू हुआ। आज कौशलेन्द्र के साथ हजारों किसान जुड़े हुए है और हजारों युवाओं को रोजगार देने का काम आज कौशलेन्द्र कर रहे है।

(2) अलवर में एक युवा अपनी 1.50 लाख की नौकरी छोड़कर पानी पूरी के ठेले bussiness को मूर्त रूप देने में लगा है तो “चायोस “ओर “T-pot” जैसे startup की शुरुआत करने वाले भी अपनी MNC की CA जैसी प्रसिद्ध नौकरियों को छोड़कर चाय की दुकान से शुरुआत करते हुए आज करोड़ो का टर्नओवर ले रहे है। बेरोजगारी का अंत करने के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक अब हमारी नौकरी वाली मानसिकता को दूर करना हो गया है। आज बी.टेक, एमबीए, नर्सिंग करने के बाद भी लोग 10 हजार की नौकरी के लिए भटक रहे है। इसलिए सोच में बदलाव की आवश्यकता है।
By:- मानसिंह